समय निकालें भारतीय भाषाओं के लिये
कृष्णने गोवर्धन उठाया तो गोप-गोपियोंने लाठीका टेक दिया - रामने सेतू बाँधा तो गिलहरीने हाथ बँटाया। आप भी हिंदी व भारतीय भाषाओंके लिये योगदान दें। इन्स्क्रिप्ट कीबोर्ड लेआउट सीखें। यह कक्षा पहली के पाठानुरूप (अआइई, कखगघचछजझ...) चलता है और उतनाही सरल है। फिर आप आठवीं फेल, अंग्रेजी न जाननेवाले बच्चोंको भी पाँच मिनटमें संगणक-टंकन सिखाकर उनकी दुआएँ बटोरिये।

शनिवार, 6 जून 2009

2 links on disability

Dear all
Me Shrikant Gadre from Pune
here are 2 links of short films subject is disability
I request you to watch it and if you like please forward it to all
your friends,

http://www.youtube. com/watch? v=nPf787sfn2E

http://www.youtube. com/watch? v=yv4DLrAYZ4s

You also reply me about the film at shrikantgadre@ gmail.com
my cell no is 9422000101

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

All from BENAZEER

दिल में एक जाने-तमन्नाने जगाह पाई है।
आज गुलशन मे नही घर मे बहार आई हैं।।

आ गया मेरे तसव्वुर में कोई पर्दानशीं
आज हर चीज नजर आने लगी मुझको हसीं
क्या कहूँ मै बडी दिलकश मेरी तनहाई है।।

बहकी- बहकी नशा-ए-हुस्न में खोई खोई
जैसे खैय्याम की रंगीन रुबाई कोई
दिलके शीशे में परी बनके उतर आई है।।

हुस्न के सामने इजहारे-वफा है मुश्किल
काश छिपकर ही वो सुन ले मेरा अफसाना-ए-दिल
जिसने ये प्यार की मंजिल मुझे दिखलाई है।।
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हुस्न की बहारें लिये आये थे सनम
ऐसी बदनसबी हुई मिल सके न हम।।
उनका करम भी आज सितम होके रह गये
एक नगमा था जो आज कही खोके रह गया
हल्की सी एक खुशी है तो हलका सा एक गम।।
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मिल जा मिल जा मिल जा रे जाने जाना
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मुबारक है वो दिल जिसको किसीसे प्यार हो जाये
नजरवालोंसे छिपकर यार का दीदार हो जाये।
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खरा तो एकचि धर्म -- साने गुरुजी

खरा तो एकचि धर्म -- अनुवादाचे काम चालू आहे.
खरा तो एकचि धर्म -------------- एकही धर्म है सच्चा
जगाला प्रेम अर्पावे -------------- सभी को प्यार बाँटे हम -- (जगत् को प्यार दे पायें)To choose 1 of 2

जगी जे दीन अति पतित-------------- यहाँ जो दीन हैं - पतित
जगी जे दीन पद - दलित-------------- यहाँ जो दीन - पद - दलित
तया जाऊन उठवावे-------------- उन्हें जाकर उठाये हम ।
जगाला प्रेम अर्पावे-------------- सभी को प्यार बाँटे हम ॥

जयांना कोणी ना जगती-------------- जिन्हें कोई नही अपने
सदा जे अंतरी रडती-------------- दु:खी जो अपने अंतर में
तया जाऊन सुखवावे-------------- सुखी उनको कराये हम ।
जगाला प्रेम अर्पावे -------------- सभी को प्यार बाँटे हम॥

समस्ता धीर तो द्यावा-------------- कहीं धीरज बँधा पायें
सुखाचा शब्द बोलावा-------------- कभी हँसकर करें बातें
अनाथा साहय ते द्यावे-------------- अनाथोंको खुशी दें हम।
जगाला प्रेम अर्पावे -------------- सभी को प्यार बाँटे हम॥

सदा जे आर्त अति विकल------------ सदासे आर्त जो विकल
जयांना गांजती सकल-------------- गिराते हैं जिन्हे सबल
तया जाऊन हसवावे-------------- उन्हे चलकर हंसाये हम ।
जगाला प्रेम अर्पावे-------------- सभी को प्यार बाँटे हम ॥

कुणा ना व्यर्थ शिणवावे ---------- किसी को व्यर्थ ना छेडें
कुणा ना व्यर्थ हिणवावे---------- किसी को व्यर्थ ना कोसें
समस्ता बंधु मानावे ---------- हरेक को बंधु जानें हम।
जगाला प्रेम अर्पावे-------------- सभी को प्यार बाँटे हम ॥

प्रभूची लेकरे सारी ---------- प्रभू के ये सभी बच्चे
तयाला सर्वही प्यारी ---------- सभी उसके लिये प्यारे
कुणा ना तुच्छ लेखावे ---------- तुच्छता ना दिखायें हम।
जगाला प्रेम अर्पावे-------------- सभी को प्यार बाँटे हम ॥

जिथे अंधार औदास्य---------- अंधेरा हो उदासी का
जिथे नैराश्य आलस्य ---------- निराशा या कि आलस का
प्रकाशा तेथ नव न्यावे ---------- उजाला ले के जायें हम।
जगाला प्रेम अर्पावे-------------- सभी को प्यार बाँटे हम ॥

असे जे आपणांपाशी ---------- जगत् से जो भी है पाया
असे जे वित्त वा विद्या ---------- कमाया है जो धन विद्या
सदा ते देतची जावे ---------- उन्हे सबपर लुटायें हम।
जगाला प्रेम अर्पावे -------------- सभी को प्यार बाँटे हम
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मंगलवार, 7 अप्रैल 2009

The blog एक शाम मेरे नाम by manish kumar

एक शाम मेरे नाम A wonderful blog by manishkmr1111@yahoo.com
This blog allows you to see video or listen to an audio of poems, poets, film songs, full of great emotions.
See the blog at
http://ek-shaam-mere-naam.blogspot.com/

शनिवार, 14 फ़रवरी 2009

रहबरी का सवाल

Poet -- can anyone pl tell who ??

तू इधर उधर की न बात कर, ये बता कि कारवाँ क्यों लुटा ।
मुझे रहजनी से गिला नही, तेरी रहबरी का सवाल है ।।

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2009

Purushsookta -- पुरुषसूक्त

पुरुषसूक्त
सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपाद् ।
स भूमिं सर्वतो वृृत्या अत्यतिष्ठत् दशाङ्गुलम् ।।
To be loaded

शनिवार, 7 फ़रवरी 2009

ganga -- F/o Mukund kulkarni

विभूषितानङ्गरिपूत्तमाङ्गा
सद्य कृतानेकजनार्तिभङ्गा ।
मनोहरोत्तुंग चलत्तरङ्गा
गंगा ममाङ्गान्यमलीकरोतु ॥

बुधवार, 14 जनवरी 2009

चालचलाऊ भगवद्गीता -- वर्हाडी ठेचा

(लेखकाचे नांव लगेच सापडलेले नाही... कोणी क्लू देईल कां)
चालचलाऊ भगवद्गीता
पार्थ म्हणे गा हृषीकेशी | या युद्घाची ऐशी तैशी
बेहेत्तर आहे मेलों उपाशी | पण लढणार नाहीं !
धोंडयात जावो ही लढाई | आपल्या बाच्यानें होणार नाही
समोर सारेच बेटे जावाई | बाप, दादे, काके.
काखे झोळी, हातीं भोपळा | भीक मागून खाईन आपला
पण हा वाह्यातपणा कुठला | आपसांत लठ्ठालठ्ठी
या बेटयांना नाही उद्योग | जमले सारे सोळभोग
लेकांनो ! होऊनिया रोग | मराना कां !
लढाई का असते सोपी ? मारे चालते कापाकापी
कित्येक लेकाचे संतापी | मुंडकीहि छाटती.
मग बायका बोंबलती घरी | डोई बोडून करिती खापरी
चाल चाल कृष्णा ! माघारीं | सोड पिच्छा युद्घाचा.
अरे, आपण मेल्यावर | घरच्या करतील परद्बार
माजेल सारा वर्णसंकर | आहेस कोठे बाबा !
कृष्ण म्हणें रे अर्जुना ! | हा कोठला बे ! बायलेपणा ?
पहिल्यानें तर टणटणा | उडत होतास लढाया
मारे रथावरी बैसला | शंखध्वनि काय केला !
मग आतांच कोठें गेला | जोर तुझा मघांचा ?
तू बेटया | मुळचाच ढिला | पूर्वीपासून जाणतों तुला;
परि आतां तुझ्या बापाला | सोडणार नाही बच्चम्जी !
अहाहारे !भागूबाई !| म्हणे मी लढणार नाही;
बांगडया भरा कीं रडूबाई | आणि बसा दळत !
कशास जमfवले आपुले बाप ? नसता बिचार्‍यांसि दिला ताप;
घरी डारडुर झोंप | घेत पडलें असते !
नव्हते पाहिलें मैदान | तोवर उगाच करी टुणटुण;
म्हणें यँव करीन त्यँव करीन | आतांच जिरली कशानें ?
अरे तू क्षत्रिय की धेड ? | आहे की विकिली कुळाची चाड ?
लेका भीक मागावयाचें वेड | टाळक्यांत शिरलें कोठुनी ?
अर्जुन म्हणे ‘गा’ हरी !| आतां कटकट पुरे करी;
दहादां सांगितले तरी | हेका का तुझा असला ?
आपण काही लढत नाही | पाप कोण शिरीं घेई !
ढिला म्हण की भागूबाई | दे नांव वाटेल तें.
अैसे बोलोनि अर्जुन | दूर फेकूनी धनुष्यबाण
खेटरावाणी तोंड करुन | मटकन्‌ खाली बैसला
इति श्रीचालचलाऊ गीतायां प्रथमाsध्याय : |