Vinay Sharma July 15 at 12:40pm
विलक्षण यशोदा पुत्र श्याम, अदभुत श्याम की माई !
नमन आप दोनों के स्नेह को, श्याम, श्याम की आई !!
संस्कार चरित्र दृष्टिकोण नहीं, कर्म कोई भी गौण नहीं,
अछूत भी सम्मान के अधिकारी,माँ तुमने सिखलाई !
डूब कर दुष्ट वासना में मैं अपहरण मुद्राएँ जो कर बैठा,
तुमने नैतिकता छड़ी बनाकर, लोभ की कर दी पिटाई !
दीवारों के भी कान होते हैं, राम मंदिर भी नहीं निश्कर्ण,
फिर क्यूँ भजन बाहर से पंडित जी, मंदिर में न दे सुनाई ?
तिनका तिनका जोड़ कर, ऋण में कमर को तोड़ कर,
कोसों दूर चल कर भी ले आये, मुझे खिलने दही मलाई !
गुरु गोविन्द दोनों खड़े, प्रथम किसको करूँ प्रणाम,
बलिहारी गुरु माँ तेरी, जो मुझे पिता दिए दिखाई !
भिक्षु श्याम पथ पथ भटके, शिक्षा भिक्षा लेने को,
पर दरिद्र हो गया मैं कितना कर के माँ की विदाई !
नतमस्तक वंदना,
विनय
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गुरुवार, 15 जुलाई 2010
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