मुझे कभी कभी सपना ये आये कि शाम मेरी गलियोंमें बांसरी बजाये ।।
सुधबुध भूलके मैं जाऊँ दौडी दौडी, अँखियाँ बावरी मैं खोलूँ थोडी थोडी
अँखियाँ खोली खोली फिरूँ मैं गली गली, फिर भी कान्हा नजर नही आये।।
चढ गया हाथ अगर एक दिन छलिया, देखना छीन लूँगी उसकी मुरलिया,
लाख अरज करे नैना नीर बहाए, चाहे कैसे बहाने वो बनाए ।।
सपनों की डोर में पिरोई मैंने कलियाँ जाने मनाए कहाँ शांम रंगरलियाँ
मेरे मोहनका पता ला दे कोई जरा, प्यारकी माला न कुम्हला जाये ।।
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बाला मैं बैरागन हूँगी।
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