आज प्रसिद्ध क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा की पत्नी दुर्गादेवी, जो क्रांतिकारियों के बीच दुर्गा भाभी के नाम से
प्रसिद्द थीं, का जन्मदिवस है| ७ अक्तूबर,1907 को इलाहाबाद के एक न्यायाधीश के यहाँ जन्मी दुर्गा का विवाह
ग्य
ारह वर्ष की आयु में नेशन
ल कालेज-लाहौर के विद्यार्थी उन पन्द्रह वर्षीय भगवतीचरण वोहरा से हो गया जो पूर्णरूपेण क्रान्तिभाव से भरे हुए
थे| दुर्गा देवी भी आस-पास के क्रांतिकारी वातावरण के कारण उसी में रम गईं थी। सुशीला दीदी को वे अपनी
ननद मानती थीं। भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव की त्रिमूर्ति समेत सभी क्रांतिकारी उन्हें भाभी मानते थे। साण्डर्स
वध के पश्चात् भगत सिंह और राजगुरु को पुलिस से बचा कर लखनऊ लाने में उनका योगदान और साहस कभी
भुलाया नहीं जा सकता| वे भेष बदल बदल कर क्रांतिकारियों को अक्सर बम-पिस्तौल मुहैया कराती रहती थीं।
असेम्बली बम काण्ड में गिरफतारी देकर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के जेल चले जाने पर इन्हें छुड़ाने की
योजना के तहत किये जा रहे बम परीक्षण के दौरान भगवती चरण वोहरा की मृत्यु हो गयी। मृत्यु की सूचना का
वज्रपात सहते हुए, अन्तिम दर्शन भी न कर पाने का दंश झेलते हुए भी धैर्य और साहस की प्रतिमूर्ति बनी रहीं
दुर्गा भाभी। पति की मृत्योपरान्त उनको श्रद्धांजलिरूपेण वे दोगुने वेग से क्रांति कार्य को प्रेरित करने लगी। मुम्बई
के गवर्नर हेली की हत्या की योजना दुर्गा भाभी ने पृथ्वी सिंह आजाद, सुखदेव राज, शिंदे और बापट को मिला
कर बनाई। गलत-फहमी में इन लोगों ने पुलिस चौकी के पास एक अंग्रेज अफसर पर गोलियां बरसा दीं। बापट
की कुशलता पूर्वक की गई ड्राइविंग से यह लोग बच पाये।चन्द्रशेखर आजाद, जो दुर्गा भाभी को अब भाई की
तरह सहारा देते थे, उन्होंने इस योजना को लेकर काफी डांट लगाई। कुछ दिनों के बाद चन्द्रशेखर आजाद भी
इलाहाबाद में शहीद हो गये। समृद्ध परिवार की दुर्गा भाभी के तीनों घर लाहौर के तथा दोनों घर इलाहाबाद के
जब्त हो चुके थे और पुलिस पीछे पडी थी। अनगिनत कष्ट उठाये इस दौरान दुर्गा भाभी ने जिन्हें गाँधी-नेहरु के
गुणगान में मस्त ये देश ना जानता है , ना जानना चाहता है| इसमें दोषी अगर हमारे सत्ताधीश हैं जिन्होंने
आज़ादी की लड़ाई का श्रेय कभी भी कांग्रेस और उसमें भी गाँधी-नेहरु से आगे जाने नहीं दिया, तो हम भी कम
दोषी नहीं हैं जिन्होंने कभी जानने की जरुरत ही नहीं समझी कि हमें आज़ादी क्या सचमुच बिना खड्ग बिना
ढाल मिल गयी जैसा की हमें बताया जाता है या असंख्य बलिदानियों ने इसके लिए अपना सर्वस्व होम कर दिया|
१४ सितम्बर,१९३२ को पुलिस ने बुखार में तपती दुर्गा भाभी को कैद कर लिया। १५ दिन के रिमाण्ड के पश्चात
सबूतों के अभाव में दुर्गा भाभी को पुलिस को रिहा करना पड़ा। १९१९ रेग्यूलेशन ऐक्ट के तहत तत्काल उनको
नजर कैद कर लिया गया और लाहौर और दिल्ली प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई। तीन वर्ष बाद पाबंदी हटने पर वो
प्यारेलाल गर्ल्स स्कूल गाजियाबाद में शिक्षिका के रूप में कार्य किया। योग्य शिक्षा देने की चाह में दुर्गा भाभी ने
अड्यार में माण्टेसरी का प्रशिक्षण लिया और 1940 में लखनउ में पहला माण्टेसरी स्कूल खोला। सेवानिवृत्त के
पश्चात् वे गाजियाबाद में अपने बेटे शचीन्द्र के साथ रहने लगीं पर ये देश उन्हें भुला बैठा| बरसों बाद लोगों ने
उनका नाम तब सुना सब देहली के तत्कालीन मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना ने गाज़ियाबाद में उनके घर पर जाकर
देहली सरकार की ओर से उनका सम्मान किया और। 14अक्तूबर, 1999 को दुर्गा भाभी इस नश्वर संसार को
त्याग कर हम सबसे दूर चली गयी ।राष्ट के लिए समर्पित दुर्गा भाभी का सम्पूर्ण जीवन श्रद्धा-आदर्श-समर्पण के
साथ-साथ क्रान्तिकारियों के उच्च आदर्शों और मानवता के लिए समर्पण को परिलक्षित करता है। उनके
जन्मदिवस पर शत शत नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि|
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